और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।
माँ ही जाने माँ की महिमा, बड़ी खुदा से है मेरी माँ।
माँ का कर्ज न चुक सकता है, क्योंकि सबकी होती सीमा।।
माँ ने हमको जन्म दिया है, माँ ने हमको जगत दिखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
जब हम रोते चुप करवाती, वह लोरी हर रात सुनाती।
पहले सबकी भूख मिटाये, बचा-खुचा वह खाना खाती।।
वह है काफिर और नास्तिक, जिसने माँ का हृदय दुखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
हम बच्चा वह बच्चा बनती, बच्चों की वह बकबक सुनती।
सर्दी के पहले मेरी माँ, हम बच्चों के स्वेटर बुनती।।
पहन के देखो बेटा स्वेटर, कैसा लगता कह पहनाया।
औप कहीं पर नजर न आया। माँ को देखा ईश्वर पाया।।
माँ ही जाने माँ की महिमा, बड़ी खुदा से है मेरी माँ।
माँ का कर्ज न चुक सकता है, क्योंकि सबकी होती सीमा।।
माँ ने हमको जन्म दिया है, माँ ने हमको जगत दिखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
जब हम रोते चुप करवाती, वह लोरी हर रात सुनाती।
पहले सबकी भूख मिटाये, बचा-खुचा वह खाना खाती।।
वह है काफिर और नास्तिक, जिसने माँ का हृदय दुखाया।
और कहीं पर नजर न आया, माँ को देखा ईश्वर पाया।।
हम बच्चा वह बच्चा बनती, बच्चों की वह बकबक सुनती।
सर्दी के पहले मेरी माँ, हम बच्चों के स्वेटर बुनती।।
पहन के देखो बेटा स्वेटर, कैसा लगता कह पहनाया।
औप कहीं पर नजर न आया। माँ को देखा ईश्वर पाया।।
गणेश जी ने भी तो मात पिता की परिक्रमा कर के संसार की परिक्रमा का फल प्राप्त किया था! माँ की महिमा अपार... इश्वर से भिन्न नहीं उसका स्वरुप! दे तो दिए प्रभु ने दर्शन आपको... और क्या प्रमाण चाहिए...!
ReplyDeleteसुन्दर भाव... सुन्दर अभिव्यक्ति!
प्रतिक्रिया देकर हौसला बढ़ाने के लिये धन्यवाद।
ReplyDeleteमुझे ईश्वर के इस तरह के रूपों से आपत्ति नहीं है।
मुझे आपत्ति है ईश्वर के उन रूपों से जिनका जन्म
अज्ञानता एवं डर से हुआ है।
दिनेश जी,
ReplyDeleteअति सुन्दर भावपूर्ण माँ के ऊपर सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई !
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए बहुत धन्यबाद!
लिखते रहे..
आशु
आशु जी सादर प्रणाम,
ReplyDeleteरचना की तारीफ करके उत्साह-वर्धन करने के लिये धन्यवाद।