ज्ञात कोख में बेटी होगी, एवर्सन से उसे गिराते।
बेटी होती घर में मातम, बेटा होता खुशी मनाते।।
देख न पाई कैसी दुनियाँ, उसे पेट में मसल दिया है।
कहते कभी न चीटी मारी, पर बेटी का कतल किया है।।
सब धर्मों में, सब समाज में, बेटी क्यों अपराध बनी है।
आगे चलकर जीवन देती, बेटी क्यों अभिशाप बनी है।।
जिसने पुत्र किया है पैदा, उसने ही बेटी है जन्मी।
बेटा हो सुख, बेटी हो दुख, यह मानवता की बेशर्मी।।
पिता डाँट माँ की फटकारें, वह समझे कि प्यार यही है।
लाड प्यार केवल भाई को, उसने केवल मार सही है।।
गलती से गलती हो जाये, कहते सब यह पागल मूरख।
वह कहती गलती धोखे से, सब कहते यह करती बकबक।।
जानबूझकर कर देता है, बेटा अगर बड़ी कोइ गलती।
उस पर तो मम्मी पापा की, नजर नहीं जाने क्यों पड़ती।।
बेटी माँगे कोई खिलौना, बातों से उसको बहलाते।
बेटा माँगे कोई खिलौना, एक नहीं दो-दो दिलवाते।।
सुन्दर नये भाई को कपड़े, बहने उसका उतरन पहनें।
बदल गई है कितनी दुनियाँ, मगर उपेक्षित फिर भी बहनें।।
बेटी घर की रौनक होती, बेटी घर की जिम्मेदारी।
बेटी है तो घर में खुश्बू, घर की करती पहरेदारी।।
उसको सबकी चिंता रहती, सबको खुशियाँ देने वाली।
ईश्वर की यह कैसी माया, उसकी किस्मत रोने वाली।।
बीमारी में बेटी सम्मुख, बेटी घऱ की पीड़ा हरती।
बेटे घर संकट लाते, बेटी घर में खुशियाँ भरती।।
भाई को वह बहुत चाहती, बेटी को है सहना आता।
सबका दुख वह हरने वाली, अपना दुख न कहना आता।।
संविधान में हक हैं सारे, पर घर में अधिकार नहीं है।
मात-पिता के क्यों अधिकारी, बेटी से जो प्यार नहीं।।
बचपन को वह जान न पाई, कब है आता कब है जाता।
बचपन का आभास उसे तब, जिस दिन बेटी बनती माता।।
बेटी होती घर में मातम, बेटा होता खुशी मनाते।।
देख न पाई कैसी दुनियाँ, उसे पेट में मसल दिया है।
कहते कभी न चीटी मारी, पर बेटी का कतल किया है।।
सब धर्मों में, सब समाज में, बेटी क्यों अपराध बनी है।
आगे चलकर जीवन देती, बेटी क्यों अभिशाप बनी है।।
जिसने पुत्र किया है पैदा, उसने ही बेटी है जन्मी।
बेटा हो सुख, बेटी हो दुख, यह मानवता की बेशर्मी।।
पिता डाँट माँ की फटकारें, वह समझे कि प्यार यही है।
लाड प्यार केवल भाई को, उसने केवल मार सही है।।
गलती से गलती हो जाये, कहते सब यह पागल मूरख।
वह कहती गलती धोखे से, सब कहते यह करती बकबक।।
जानबूझकर कर देता है, बेटा अगर बड़ी कोइ गलती।
उस पर तो मम्मी पापा की, नजर नहीं जाने क्यों पड़ती।।
बेटी माँगे कोई खिलौना, बातों से उसको बहलाते।
बेटा माँगे कोई खिलौना, एक नहीं दो-दो दिलवाते।।
सुन्दर नये भाई को कपड़े, बहने उसका उतरन पहनें।
बदल गई है कितनी दुनियाँ, मगर उपेक्षित फिर भी बहनें।।
बेटी घर की रौनक होती, बेटी घर की जिम्मेदारी।
बेटी है तो घर में खुश्बू, घर की करती पहरेदारी।।
उसको सबकी चिंता रहती, सबको खुशियाँ देने वाली।
ईश्वर की यह कैसी माया, उसकी किस्मत रोने वाली।।
बीमारी में बेटी सम्मुख, बेटी घऱ की पीड़ा हरती।
बेटे घर संकट लाते, बेटी घर में खुशियाँ भरती।।
भाई को वह बहुत चाहती, बेटी को है सहना आता।
सबका दुख वह हरने वाली, अपना दुख न कहना आता।।
संविधान में हक हैं सारे, पर घर में अधिकार नहीं है।
मात-पिता के क्यों अधिकारी, बेटी से जो प्यार नहीं।।
बचपन को वह जान न पाई, कब है आता कब है जाता।
बचपन का आभास उसे तब, जिस दिन बेटी बनती माता।।
सटीक पंक्तियाँ....... न जाने यह भेदभाव आज भी हमारे परिवारों का हिस्सा क्यों है.....?
ReplyDeleteआदरणीय मोनिका जी, अपनी प्रतिक्रिया से रचना की सराहना करके
ReplyDeleteउत्साह-वर्धन करने के लिये आभार।
वाह बहुत सार्थक रचना...
ReplyDeleteसबका दुख वह हरने वाली, अपना दुख न कहना आता।।
संविधान में हक हैं सारे, पर घर में अधिकार नहीं है।
मात-पिता के क्यों अधिकारी, बेटी से जो प्यार नहीं।।
...सचमुच दुखद है...ना जाने कब स्थिति सुधरेगी हमारे समाज की..
आदरणीय विद्या जी, मेरी रचना पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिये
ReplyDeleteआभार।
yah samwedna bahut jaroori chiz hai...achha prayas hai
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी मुझे आगे लिखने के लिये प्रेरित करती है।
ReplyDeleteआपका आभार........
सुन्दर, सटीक एवं सार्थक रचना! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता है| बेटियों से यह परायापन achchha नहीं|
ReplyDeleteआपकी रचना उत्कृष्ट लगी|
Thanx, mere blog par aane ka . aapki post behad samvedansheel hae maene bhi "kaese bachen betiyan" ae article likha tha yadi samay mile to avashya padhen
ReplyDeleteUrmi जी सचमुच यह कविता मेरे दिल से निकली थी।
ReplyDeleteयदि वास्तव में आपके दिल को छू गई तो मैं समझूँगा
कि मेरा प्रयास सार्थक रहा।
Diwas जी हमारे परिवारों से बेटियों के लिये परायापन
बहुत ही चिन्तनीय है। मेरे ब्लॉग पर आकर प्रतिक्रिया
देकर हौसला बढ़ाने के लिये आभार।
sangita जी तारीफ के लिये आभार, आपका article
कैसे बचायें बेटियाँ सचमुच समाज को झझकोरने वाला है।
बहुत सुन्दर कविता ....
ReplyDeletepoint मेरे ब्लॉग पर आने एवं उत्साह-वर्धक प्रतिक्रिया देने के लिये
ReplyDeleteहृदय से आभार। ऐसी ही कृपा बनाये रखिये।