Sunday, 11 December 2011

दिनेश की मधुशाला (प्रेम, विद्या और एकता)

                                  प्रेम
वही सार्थक जीवन समझू, पिये प्रेम की जो हाला।
 ठेस लगी गर हल्की सी ही, पल में टूटे दिल प्याला।।
पिला रहे हैं इक दूजे को, दोनों ही बनकर साकी।
जितनी पीते इच्छा होती, यह जीवन है मधुशाला।।
                               विद्या
व्यर्थ जिन्दगी निश्चित होती, अगर न पी विद्या हाला।
भर-भर कर हम पीते जाते, पुस्तक-कापी का प्याला।।
हमें पिलाते मार, डॉटकर, शिक्षक बनकर के साकी।
पीकर सफल जिन्दगी करते, यह विद्यालय मधुशाला।।
                              एकता
हुये इकठ्ठे छककर पीना, हमें एकता की हाला।
एक दूसरे का आपस में, भरे विचारों का प्याला।।
पियें सभी बन जायें हम ही, एक दूसरे के साकी,
करें व्यवस्था नशा अधिक हो, बने देश यह मधुशाला।।

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