एक कवि अपनी प्रेयसी के विभिन्न अंगों एवं हावभावों
का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करता है,जिसके प्रति उत्तर
में व्यंगरूप में तीस वर्ष पर्व लिखी गईं पंक्तियाँ आप
सबके मनोरंजनार्थ प्रस्तुत हैं। आप सबके आशीष कथनों
की आकांक्षा:-
लुफ्त पीने का उठाया जाय
------------------------------
........................................
झील सी गहरी ये आँखें हैं,
क्यों न ये झककर नहाया जाय।
संगमरमर सा बदन तेरा,
ताज फिर दूजा बनाया जाय।
दिल है दरिया की तरह तेरा,
नाव को इसमें चलाया जाय।
बात करने से झरें मोती,
खर्च इनसे ही उठाया जाय।
चाँद सा लगता तिरा चेहरा,
चाँद को क्यों न चिढ़ाया जाय।
धड़कनें तेरी हैं सरगम सी,
गीत क्यों न गुन गुनाया जाय।
तीर सी लगती नजर तिरछी,
क्यों न दुश्मन पास लाया जाय।
ओंठ फाँकें संतरे सी दो,
जूस फिर इनसे निकाला जाय।
आँख दर्पन सी कवि कहते,
देखकर खुद को सजाया जाय।
तन से यौवन की छलकती मय,
लुफ्त पीने का उठाया जाय।
आँख में तेरी भरी मदिरा,
इनको मयखाना बनाया जाय।
झूठ कहने में हो माहिर तुम,
क्यों वकीलों पास जाया जाय।
दिल बड़ा तेरा बहुत ही है,
क्यों न अपना घर बनाया जाय।
का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन करता है,जिसके प्रति उत्तर
में व्यंगरूप में तीस वर्ष पर्व लिखी गईं पंक्तियाँ आप
सबके मनोरंजनार्थ प्रस्तुत हैं। आप सबके आशीष कथनों
की आकांक्षा:-
लुफ्त पीने का उठाया जाय
------------------------------
........................................
झील सी गहरी ये आँखें हैं,
क्यों न ये झककर नहाया जाय।
संगमरमर सा बदन तेरा,
ताज फिर दूजा बनाया जाय।
दिल है दरिया की तरह तेरा,
नाव को इसमें चलाया जाय।
बात करने से झरें मोती,
खर्च इनसे ही उठाया जाय।
चाँद सा लगता तिरा चेहरा,
चाँद को क्यों न चिढ़ाया जाय।
धड़कनें तेरी हैं सरगम सी,
गीत क्यों न गुन गुनाया जाय।
तीर सी लगती नजर तिरछी,
क्यों न दुश्मन पास लाया जाय।
ओंठ फाँकें संतरे सी दो,
जूस फिर इनसे निकाला जाय।
आँख दर्पन सी कवि कहते,
देखकर खुद को सजाया जाय।
तन से यौवन की छलकती मय,
लुफ्त पीने का उठाया जाय।
आँख में तेरी भरी मदिरा,
इनको मयखाना बनाया जाय।
झूठ कहने में हो माहिर तुम,
क्यों वकीलों पास जाया जाय।
दिल बड़ा तेरा बहुत ही है,
क्यों न अपना घर बनाया जाय।
सार्थक प्रस्तुति है सर आपकी
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
ReplyDeleteलाजबाब रचना
ReplyDeleteनववर्ष की मंगल कामनाएं .
गुजारिश -> word verification को हटा दें तो कमेन्ट में सुगमता होगी
संजू जी,उर्मी जी एवं राजपूत जी उत्साह-वर्धक
ReplyDeleteप्रतिक्रिया देने के लिये आभार।
Rejput ji word verification हटा दिया है,
ReplyDeleteसुझाव देने के लिये आभार।
simply suparb,,,vaah.. vaah.. vaah..maja aa gaya padhkar.
ReplyDeleteराजेश जी आभार प्रतिक्रिया देने के लिए....
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबस आपकी ये रचना नायिका पढ़ ना ले...
बहुत बढ़िया.
vidya ji सादर प्रणाम,
ReplyDeleteरचना की प्रशंसा करने के लिये आभार,
अभी तक तो नायिका की नजर में रचना नहीं आई,
जबकि रचना को लिखे लगभग 30 वर्ष हो चुके हैं।
नख शिख वर्रण में माहिर हैं आप .अच्छे प्रयोग किये हैं आपने थोड़ा हटके .सुन्दर अंदाज़ हैं आपके .
ReplyDeleteवीरूभाई मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए
ReplyDeleteहृदय से आभार....
वाह दिनेश जी ... उपमाएं और उनका अनोखा प्रयोग ...
ReplyDeleteनिर्मल हास्य से भरपूर रचना ...
दिगम्बर जी मेरी रचना को सराहने के
Deleteलिये आपका हृदय से आभार.....
bahut achhe vimb aur gahre bhaw
ReplyDeleteरश्मि जी प्रोत्यसाहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिये आभार......
ReplyDeleteक्या कहने...कवि भी सोच रहा होगा कि क्यों कहा मैंने....अच्छा है
ReplyDeleteतीर सी लगती नजर तिरछी,
ReplyDeleteक्यों न दुश्मन पास लाया जाय।....bahut badhiya!
सुधा जी मेरा उत्साह बढ़ाने के लिये आपका बहुत बहुत
Deleteआभार......
तन से यौवन की छलकती मय,
ReplyDeleteलुफ्त पीने का उठाया जाय।
आँख में तेरी भरी मदिरा,
इनको मयखाना बनाया जाय।
Vah ....bahut umda dinesh ji badhai.
Naveen ji,रचना की तारीफ करने के लिये
Deleteआपका बहुत बहुत आभार...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteउर्मी जी प्रतिक्रिया देने के लिये बहुत बहुत आभार....
Deletebahut sundar rachna...itne ssal baad bhi aaj ki hi rachna lgti hai
ReplyDeleteअवंती सिंह जी रचना की सराहना करने एवं प्रतिक्रिया देने के लिये
Deleteबहुत बहुत आभार....
एक कविता अंग प्रदर्शन पर हो जाए -नख शिख -ओ लाला ओ लाला अब मैं जवान हो गई ...
ReplyDeleteगण निरपेक्ष तंत्र मुबारक .
वीरू भाई जी प्रतिक्रिया देने के लिये आपका बहुत बहुत आभार....
Deleteअनेकता में एक्ता की गजब की मिसाल.....बढ़िया हास्य.....
ReplyDeleteअरुण जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.....
Deleteशानदार रचना .
ReplyDeleteअमृता जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.......
Deleteगणतंत्र दिवस के मौके पर जानदार और शानदार रचना है।
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
संजय जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.....
Deleteगणतंत्र दिवस का शुभामनायें.....
बहुत रोचक है पोस्ट आपकी
ReplyDeleteक्योँ न एक कमेन्ट किया जाए
बेहतर प्रस्तुति ...!
केवल राम जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.....
Deleteबेहतरीन
Deleteममता जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार.........
Deletehttp://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteगौ वंश रक्षा मंच ,सब गौ प्रेमियों को सादर आमंत्रित करता है के अपने विचार /सुझाव/लेख/ कविताये मंच पर रक्खें ,मंच के सदस्य बने ,और मंच के लेखको में अपना नाम जोड़ कर मंच को गरिमा प्रदान करें ....गौ हम सब की माँ है , माँ के लिए एक जुट होना हमारा फ़र्ज़ है.....
आवश्यक, शुक्रिया......
Deleteaapne jis umr men yah kavita likhi hogi
ReplyDeleteusmen to masti hi masti sujhati hai.
apni 30 varsh purani prastuti padhwane
ke liye aabhar.
samay milne par mere blog par aaiiyega.
प्रतिक्रिया देने के लिये आभार......
ReplyDeletesunder rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen
प्रीति जी प्रतिक्रिया देने के लिये आभार......
ReplyDelete