Wednesday 16 November 2011

he bhagwan

हे भगवान,
लोग तुम्हारा क्यों करते हैं गुनगान,
लोग कहते हैं तुम हो सर्वज्ञ,सर्वज्ञाता,सर्वशक्तिमान।
किन्तु मैं ऐसा नहीं मानता,
तुम्हें अच्छी तरह जानता।
तुम सर्वशक्तिमान नहीं हो,
इसलिये मेरी नजर में भगवान नहीं हो।
हिटलर तैमूर नादिरशाह,
जब कर रहे थे लोगों को तबाह।
तब तुमने क्यों नहीं उन्हें दण्डित किया,
अपनी शक्ति से उनका सिर खण्डित किया।
जब जालिमों ने मजलूमों को मारा था,
तब मजलूमों ने तुम्हें पुकारा था।
सब माँगते रहे उनसे और तुमसे ञपने प्राणीं की भीख,
तुम बहरे हो या बहुत दूर, जो नहीं सुनाई दी उनकी चीख।
एक बात तो है प्रत्यक्ष,
कि तुम नहीं हो सर्वज्ञ।
जब कोई आत्म हत्या कर रहा होता है,
हे भगवान, तू क्या उस समय सोता है।
तू जरा भी नहीं सोचता,
उन्हें आत्म हत्या करने नहीं रोकता।
नहीं निभा पा रहा था वह, परिवार क प्रति अपने फर्ज,
उस पर हो गया था ढेर सारा कर्ज।
न कोई धन्धा न कोई रोजगार,
वह था जन्मजात बेरोजगार।
कैसे करता व अपने परिवार का भरण पोषण,
तुम्हें तो मालुम होंगे सारे कारण।
क्यों नहीं किया तुमने उसकी समस्या क निराकरण।
भगवान तुम जरा तो सोच सकते थे,
उसे आत्म हत्या करने से रोक सकते थे।
तुम उसका कर्ज चुका सकते थे,
उसे कोई न कोई रोजगार दिला सकते थे।
तुमने अच्छा नहीं किया उसके साथ,
तुम्हारे कारण ही उसके बच्चे हो गये अनाथ।
उसकी बीबी को तूने ही विधवा बनाया है,
क्योंकि आत्म हत्या करने से उसे नहीं बचाया है।
अब तो बताओ भगवान,
क्यों करूँ मैं तुम्हारा सम्मान।
एक महिला का जब होता है बलात्कार,
तब तू क्यों नहीं करता कोई चमत्कार।
जब राक्षस बन जाता है एक व्यक्ति,
उस समय उस नारी को क्यों नहीं देता अपार शक्ति।
तुम दिखाई दिये केवल द्रोपती चीरहरण के समय,
क्योंकि उस समय चाहिये थी तुम्हें केवल जय।
या द्रोपती रिश्तेदार तुम्हारी अपनी थी
तुम्हारे परम प्रिय मित्र अर्जुन की पत्नी थी।
लगता है वह कोई महाकाव्य की कथा हे,
शायद आज के परिवेश में वृथा है।
क्योंकि आज प्रतिदिन लाखो द्रोपतियाँ होती हैं बलात् नग्न,
 और तू अपनी दुनियाँ में गोपियों के साथ है मग्न।

4 comments:

  1. काश ये सारे सरोकार " सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज..." से भी कुछ सरोकार रखते...! प्रभु ने तो इतना बड़ा आश्वासन दिया है... विवेक दिया है... फिर भी सारा दोष उसी का..? शरणागत वत्सल पर भरोसा नहीं... शरण में जाने का भाव नहीं फिर भी दोष उसी का...? द्रौपदी के भीतर केशव के प्रति जो विश्वास था... अगर वह हमारी पुकार में हो... तो आज भी वो आयेंगे... आते हैं!
    विश्वास ही ईश्वर है... और यही विश्वास आज कहीं नहीं है... न संबंधों में.. न खुद पर... और न ही परमपिता पर... न ही अपने कर्मों पर... इसलिय हमारी यह दुर्दशा है!!!
    आपने सही प्रश्न उठाये हैं... प्रभु सुनकर मुस्कुरा रहे होंगे... और देखिये आपके रचना संसार पर उनकी ही प्रेरणा से हम कितना कुछ कह गए:)
    रचनात्मकता बनी रहे!
    शुभकामनाएं!

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  2. अनुपमा जी, सादर प्रणाम। मेरे ब्लॉग पर आने का आभार।
    क्षमा चाहता हूँ मैं अपने अनुभव एवं प्रत्यक्ष ज्ञान के अनुसार कह सकता हूँ कि ईश्वर के न होने के तो अनेक प्रमाण हैं किन्तु ईश्वर के होने का एक भी स्पष्ट प्रमाण नहीं है।

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  3. ईश्वर का भी दर्द सुन लीजिये... निदा फ़ाज़ली जी के शब्दों में:-
    "मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
    मुझको पहचानते कहाँ हैं लोग
    रोज़ मैं चांद बन के आता हूँ
    दिन में सूरज सा जगमगाता हूँ
    खनखनाता हूँ माँ के गहनों में
    हँसता रहता हूँ छुप के बहनों में
    मैं ही मज़दूर के पसीने में
    मैं ही बरसात के महीने में
    मेरी तस्वीर आँख का आँसू
    मेरी तहरीर जिस्म का जादू
    मस्जिदों-मन्दिरों की दुनिया में
    मुझको पहचानते नहीं जब लोग
    मैं ज़मीनों को बे-ज़िया करके
    आसमानों में लौट जाता हूँ

    मैं ख़ुदा बन के क़हर ढाता हूँ "

    आपकी नयी कविता पढ़ी... माँ में प्रभुदर्शन का सौभाग्य मिलने पर आपको कोटिशः बधाई!

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  4. आपकी प्रतिक्रिया से प्रसन्नता तथा नई कविता लिखने का विषय
    मिल गया। आपका कोटी-कोटी धन्यवाद।

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